दिल के किराएदार  YUGESH KUMAR

दिल के किराएदार

YUGESH KUMAR

बकौल मोहब्बत वो मुझसे पूछता है,
दिल के मकान के उस कमरे में
क्याअब भी कोई रहता है?
 

थोड़ा समय लगेगा, ध्यान से सुनना,
बड़ी शिद्दत से बना था वो कमरा,
कच्चा था पर उतना ही सच्चा था।
उसे भी मालूम था कि उसकी
एक-एक ईंट जोड़ने में मेरी
एक-एक धड़कन निकली थी।
 

इकरारनामा तो था
पर उसपर उसके दस्तख़त न हो पाए,
उसे कोई दूसरा कमरा पसंद था।
मेरा कमरा थोड़ा कच्चा था
सो अब सीलन पड़ने लगी थी,
थोड़ी दरारें भी आ गईं थी।
 

लोगों के कहने पर थोड़ी
मरम्मत करवाई है,
सीलन और दरारें थोड़ी भरने लगी हैं,
अब मैं वो कमरा किराए पर लगाता हूँ,
किराएदार भी अच्छे मिल जाते हैं
पर किसी में ऐसी बात नहीं मिली
कि कमरे को मकान से जोड़ दे।
 

दरारे कम हो गई हैं
पर अब भी कुछ बाकी हैं,
हाँ, मैंने इकरारनामे की कुछ शर्तें
बदल ज़रूर दी हैं,
किराया ठीक ठाक मिल जाता है
तकलीफ अब उतनी नहीं होती।

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