आगमन  Puja Bothra

आगमन

Puja Bothra

बरसात की बूँदें जब पड़ती हैं वसुधा पर,
बंजर भूमि भी पावन बन जाती,
पाकर उसका स्पर्श।
 

कठोर भूतल पर,
जब दरारें हैं पड़ती;
बादलों की छाँव से,
नई आशा है जगती।
 

किसानों की मेहनत ने भी
क्या खूब रंग दिखाया;
ओट में छिपे पक्षियों ने
महीनों बाद चैन है पाया।
 

सूरज की ढलती लालिमा
जब दुल्हन बनकर आई;
धरती माँ उसे देखकर
मंद मंद मुस्काई।
 

कोकिल के स्वरों का
अंदाज निराला था,
नदी का पानी भी आज
भरा-भरा सा था।
 

चारों ओर हरियाली थी
घर-घर में छाई खुशहाली थी;
नन्हें पौधे खुशी से झूम रहे थे,
आसमान के बादल गरज रहे थे।
 

अरे! यह क्या?
वह देखो-
रिमझिम तेज वर्षा आई,
बादलों की काली घटा है छाई;
लम्बें इंतज़ार के बाद अब लगा-
आज सभी ने इन्द्रदेव की कृपा है पाई।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1455
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com