आगमन Puja Bothra
आगमन
Puja Bothraबरसात की बूँदें जब पड़ती हैं वसुधा पर,
बंजर भूमि भी पावन बन जाती,
पाकर उसका स्पर्श।
कठोर भूतल पर,
जब दरारें हैं पड़ती;
बादलों की छाँव से,
नई आशा है जगती।
किसानों की मेहनत ने भी
क्या खूब रंग दिखाया;
ओट में छिपे पक्षियों ने
महीनों बाद चैन है पाया।
सूरज की ढलती लालिमा
जब दुल्हन बनकर आई;
धरती माँ उसे देखकर
मंद मंद मुस्काई।
कोकिल के स्वरों का
अंदाज निराला था,
नदी का पानी भी आज
भरा-भरा सा था।
चारों ओर हरियाली थी
घर-घर में छाई खुशहाली थी;
नन्हें पौधे खुशी से झूम रहे थे,
आसमान के बादल गरज रहे थे।
अरे! यह क्या?
वह देखो-
रिमझिम तेज वर्षा आई,
बादलों की काली घटा है छाई;
लम्बें इंतज़ार के बाद अब लगा-
आज सभी ने इन्द्रदेव की कृपा है पाई।
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सावन का महीना प्राकृतिक सौंदर्य का महीना है। बरसात की बूंदों से प्रकृति खिल उठती है और हर तरफ हरियाली छा जाती है। सावन का आगमन होते ही सूखी धरती तृप्त हो जाती है। सावन अपने साथ केवल वर्षा की फुहारें लेकर नहीं आता बल्कि हरियाली, ताज़गी भरी हवाएँ और मिट्टी की सौंधी खुशबू लेकर आता है, जो एक कलाकार के मन को नवीन सृजन करने के लिए प्रेरित भी करती है।