मेरा प्यारा गाँव  बिजेंद्र दलपति

मेरा प्यारा गाँव

बिजेंद्र दलपति

मुझको याद आता वो
मेरा प्यारा गाँव है,
नदी किनारे अमिया छैयां
ठण्डी-ठण्डी छाँव है।
 

भोर सवेरे चिडियों की
चहचहाती मधुर ध्वनि,
भीषण गर्मी में भी ठण्डा
कुएँ का मीठा पानी।
 

गलियों के संकरे रास्तों पर
दौड़ता नंगा पाँव है,
मुझको याद आता वो
मेरा प्यारा गाँव है।
 

अपने खेतों के गोभी, ककड़ी,
मेथी, पालक, भिंडी, चौलाई,
माँ के हाथों की रोटी, फुल्के,
घर की गायों के दूध और दही।
 

दोपहरी वो दोस्तों के संग
बतियाते पीपल छाँव है,
मुझको याद आता वो
मेरा प्यारा गाँव है।
 

खलियानों की वो पगडंडियाँ
वो अधबना सा रस्ता कच्चा,
बैलगाड़ी की टन-टन घण्टी
प्रदूषण-मुक्त परिवेश अच्छा।
 

वो हर सवेरे स्कूल छोड़ता
हिचकोले खाता नाव है,
मुझको याद आता वो
मेरा प्यारा गाँव है।
 

सुबह शाम वो मंदिर की आरती
चिर-व्यस्त गाँव का चौपाल,
आपस के वो लड़ाई झगड़े
फैसला होता, हरदम तत्काल।
 

दया, प्रेम का उत्तम दृष्टांत
एक प्यारा मेरा गाँव है,
मुझको याद आता वो
मेरा प्यारा गाँव है।

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