कल रात, मैं सपने में मर गया  Satyam Kumar Barnaval

कल रात, मैं सपने में मर गया

Satyam Kumar Barnaval

कुछ हुआ यूँ,
मैं सोया हुआ था रात को निधड़क,
थकान, उलझन और परेशानी से बेधड़क,
अचानक पता चला मेरा सबकुछ उजड़ गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

अब क्या था,
होना भी क्या था,
मैं तो मर चुका था,
और खड़ा हो, अपने मय्यत को देख रहा था,
इस तरह सब कुछ बिखर गया,
एक रात ,मैं सपने में मर गया।
 

कोई मेरे लिए रो रहा था,
कोई रोने का बहाना कर रहा,
कोई अंदर से टूट रहा था,
कोई बाहर से भी खुश था,
मेरे वजह से
किसी का उजड़ा, किसी का सवंर गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

सब अपने-अपने धर्म निभा रहे थे,
कई आँसू तो कई गम बहा रहे थे,
किसी को मेरा सहारा याद आ रहा था,
तो कोई मेरी गलतियाँ गिना रहा था,
सारी चीजें देख, पलभर के लिए ठहर गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

सोचा, मेरी दुनियादारी खतम हुई,
जीवन की बाकी उधारी खतम हुई,
अब चाहने वाले रोयेंगे,
अपना सुध-बुध खोएँगे।
ना चाहने वाले मुस्कुराएँगे,
मेरे अर्थी पर, झूठी आँसू गिराएँगे,
ये सोच, मैं भी थोड़ा बिखर गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

फिर सहसा ध्यान आया,
अब तो यमराज आएँगे,
और मुझे, अपने साथ ले जाएँगे।
चंद्रगुप्त के पास एक किताब होगी
उससे मेरे पुण्य-पाप का हिसाब होगी,
ये सोचकर थोड़ा सा मैं डर गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

फिर याद आया,
अब मेरे कर्मों को गिना जाएगा,
अगर अच्छा किया रहूँगा तो स्वर्ग,
अथवा फिर नरक दिया जाएगा।
भगवान, अपने दण्ड के विधान से,
मुझे अपने महल में ही रोक लेगा,
या फिर किसी आग की भट्ठी में झोंक देगा,
सारी बातें याद कर डर गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

फिर क्या था,
मैंने काफी देर तक इंतज़ार किया,
ना यमराज आया, ना किसी ने अत्याचार किया।
मैं इधर-उधर बेवाक होकर घूमता रहा,
कोई मुझे देख सके, ऐसा भूत ढूँढता रहा।
मुझे डर था, कहीं मेरी आत्मा भटक तो नहीं गई,
किसी अधूरे ख्वाब से मेरी मौत उचट तो नहीं गई।
यही सोचते-सोचते मैं सिहर गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

फिर किसी दिव्य शक्ति से मेरी मुलाकात हुई,
सारी समस्याओं के बारे में उससे वार्तालाप हुई,
उसने कहा- कहों क्या परेशानी है?
मैने कहाँ- ये कैसी हैरानी है?
ना यमराज आया, ना पुण्य-पाप का हिसाब हुआ,
ना गरम तेल में डाला गया, ना स्वर्ग का विचार हुआ।
ये बोल मैं, क्षण भर ठहर गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

वो हँसा और जोरदार हँसा,
फिर मुझपे व्यंग्य कसा।
मैं अचंभित हो घबराया और हँसी समझ ना पाया।
फिर उसने मुझे समझाया,
ये जो तुम्हारे लिए रो रहे है-वही पुण्य है,
और जो तुम्हे देख, हँस रहे है वो पाप है।
ये सुन उससे मैं लड़ गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।
 

मैंने कहा-
क्या ये स्वर्ग-नरक की कहानी भी झूठी है?
उसने कहा-
तेरे लिए नर्क ही है, अगर ये भीड़ तुमसे रूठी है।
और स्वर्ग है, अगर तेरे अच्छे कर्मों से ये भीड़ जुटी है।
सब समझकर मैं स्तम्भ पड़ गया,
एक रात, मैं सपने में मर गया।

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