डर नहीं  Aman Pandey

डर नहीं

Aman Pandey

डर नहीं कुछ खो देने का मुझे,
अभी ऐसा कुछ पाया ही कहाँ है?
 

डर है कहीं वो न खो दूँ,
जो मेरा किस्मत में पहले से लिखा है।
 

डर नहीं किसी के रूठ जाने का मुझसे,
अभी तक दिल लगाया ही कहाँ है?
 

डर है गलती से वो न रूठ बैठे,
जिसका रहना मेरे आक़बत में लिखा है।
 

डर नहीं गमों का ज़िंदगी में घिरने से,
अभी खुशी ढंग से परखी कहाँ है?
 

डर है उस ग़म के टलने से,
जिसकी वजह से ज़िंदगी का सँवरना लिखा है।
 

डर नहीं इस बेचैनी के खत्म होने से,
किसी की इतनी तलब़ अभी लगी कहाँ है?
 

डर है ये तब न थम जाए,
जहाँ इसका बढ़ना लिखा है।
 

डर नहीं गर ये मन का कहा कोई सुन नहीं रहा तो,
मेरी कला इतनी उम्दा कहाँ है?
 

डर है कहीं वो न लिख बैठूँ,
जिससे सबका मुझपे बिगड़ना लिखा है।

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