जीवन यात्रा AMITOSH AMITOSH
जीवन यात्रा
AMITOSH AMITOSHमैं जहाँ था कभी
आज भी हूँ वहीं
दूसरों के आईने में
ढूँढ़ता
खुद को कहीं
है मुखौटा ही यहाँ
मेरा चेहरा नहीं
भीड़ में भी खड़ा
क्यों अकेला ही
दौड़ता हूँ उम्रभर
फिर भी, हूँ वहीं
सागर पीकर भी
क्यों तृप्त नहीं
पाकर सब कुछ
क्यों होता कुछ नहीं
जिंदा हूँ मगर
जिंदा होने की निशानी
क्यों छोड़ता नहीं
बैठा हूँ नाव पर
पतवार है नहीं
समेटता हूँ उम्र भर
क्यों हाथ कुछ नहीं
मैं जहाँ था कभी
आज भी हूँ वहीं
अशांत अतृप्त !!