लौ Shambhu Amalvasi
लौ
Shambhu Amalvasiजल गया है!
अब मेरा बदन
तुम्हारे प्रेम की लौ को उठाते हुए।
इस लौ की गर्मी ने
अलग कर दिया है
मेरे बदन से तुम्हारे बदन के हिस्से को।
अब वो चाहकर भी
स्पर्श नहीं करेगा, किसी ख़्वाब को
कि प्रेम से रौशन होते हैं, दो दिल के अँधेरे।
वो समझ गया
प्रेम की लौ, प्रेम की लौ नहीं,
वहम की लौ थी...