उड़ने की चाह Deepika Sakre
उड़ने की चाह
Deepika Sakreपाना है कुछ मुझे भी, कुछ कर दिखाना चाहती हूँ,
कैसे कहूँ मैं सबसे, मैं भी उड़ना चाहती हूँ।
पढ़नी हैं किताबें मुझको, जानना है जग ये सारा,
एक नई इबारत कलम से मैं भी लिखना चाहती हूँ।
मैं भी उड़ना चाहती हूँ ....
था सुना मैंने लकीरों को बदलना मुश्किल है,
अपनी मेहनत से मैं, किस्मत को बदलना चाहती हूँ।
मैं भी उड़ना चाहती हूँ ....
फैला के अपने पंख सारे, नीले ऊँचे इस गगन में,
हौसलों की एक उड़ान मैं भी भरना चाहती हूँ।
मैं भी उड़ना चाहती हूँ ....