पड़ाव  Anupama Ravindra Singh Thakur

पड़ाव

Anupama Ravindra Singh Thakur

लगता रहा था मुझे
सबसे कठिन है पढना
और छात्र जीवन में कामयाब होना,
रात दिन आँखों फोड़ना,
एक-एक अंक के लिए संघर्ष करना।
 

जब यह पड़ाव भी पार हुआ,
लग रहा था मुझे सबसे कठिन है
नौकरी पाना
हर तरफ घूमना
और फिर निराश होना,
कहीं पर एक सशक्त मुकाम बनाना।
 

जब यह पड़ाव भी पार हुआ,
लगता रहा था मुझे
सबसे कठिन है
विवाह के गठबंधन में बँधना,
एक अजनबी के संग
जीवन भर का रिश्ता निभाना,
कभी रूठना तो कभी मनाना,
सुख -दुख का साथी बनना।
 

जब यह पड़ाव भी पार हुआ,
लग रहा था मुझे
कितना कठिन है
बहू, पत्नी, ननद का रिश्ता निभाना,
घर को कलह से दूर रखना,
बड़ों का मान-सम्मान
और आत्म गौरव बनाए रखना,
संघर्ष से यह तालमेल भी बन गया।
 

जब यह पड़ाव भी पार हुआ,
लग रहा था मुझे
कितना कठिन है
शिशु को जन्म देना,
नौ महीने गर्भ धारण कर
शिशु की हलचल का अंदाजा लगाना,
इन दिनों स्वयं का बहुत ध्यान रखना
नापसंद चीजें भी रुचि से खाना,
बच्चा स्वस्थ रहे
बस इसी तड जोड़ में रहना।
 

जब यह पड़ाव भी पार हुआ,
लग रहा था मुझे कि
कितना कठिन है
नवजात शिशु की माँ होना,
शिशु के रोने का कारण पता ना होना,
अनुमान लगाकर सब कुछ है करना,
कभी मूत्र तो कभी दस्त
दिन भर इसी में उलझे रहना।
 

जब यह पड़ाव भी पार हुआ,
लग रहा था मुझे कि
कितना कठिन है
कच्ची मिट्टी को आकार देना,
उनमें रस, गंध एवं भावनाएँ भरना,
उचित अनुचित का ज्ञान देना,
कभी कोमल
तो कभी कठोर माँ बनना,
कभी बच्चे को रुलाना तो
कभी खुद ही जोकर बनकर हँसाना।
 

जब यह पड़ाव भी पार हुआ,
लगा अब सारी चिंताएँ खत्म हुईं,
बच्चे आप किशोर हुए
अब सारे विघ्न दूर हुए,
जल्दी या भ्रम टूट गया
जब घंटों मैंने बेटे को
आईने के सामने खड़ा पाया।
चाल-ढाल सब बदल गई,
मैं ही सही
बाकी सब, कुछ नहीं
यह विचार आब बलवान हो गया।
नई आकांक्षाएँ, नए सपने,
नए कपड़े,
इन पर समय बीतने लगा।
किशोरावस्था
यह सबसे कठिन अवस्था है,
यह अब समझने लगा
क्रोध, तनाव का साम्राज्य हो गया,
किशोरावस्था सबसे मुश्किल है
इस बात का एहसास हो गया,
किशोरावस्था को संभालना
यह पड़ाव भी पार होगा,
फिर नई चुनौतियाँ आएँगी
काबिलियत को निखारेंगी
अपूर्णता को संपूर्णता में बदलेंगी।

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