शब्द Shubham Amar Pandey
शब्द
Shubham Amar Pandeyलेखनी जब उठी तो
शब्द दर्पण हो गए,
ना चाहते हुए भी उसमें
भाव अर्पण हो गए।
लेखनी सी सीप में
शब्द मोती हो गए,
उसको पढ़ते ही
हम बस कल्पना में खो गए।
शब्द ही से वाक्य है
शब्द से ही काव्य है,
शब्द से ही ये जहाँ
शब्द से आवाज़ है।
शब्द ही तो खेल है
शब्द ही तो हैं खिलाड़ी,
शब्द ही रिश्ते बनाते
शब्द ही रिश्ते बिगाड़े।
शब्द की महिमा को अब तक
न कोई पहचान पाया,
इसकी उत्कृष्ट सीमा है क्या
यह कोई न जान पाया।
यह जानने को हूँ मैं उत्सुक
कोशिशों में अब लगा हूँ,
हिंदी कुटुंब के पथ का
निर्वाह करने मैं चला हूँ।