क्षमा याचना अंकित कुमार छीपा
क्षमा याचना
अंकित कुमार छीपामैं बिना धार का चाकू और
तुम धारदार तलवार हुई,
हूँ क्षमाप्रार्थी प्रिय मेरे
मुझसे त्रुटियाँ सौ बार हुईं।
तुम तीव्र वेग, मैं मंदगति,
तुम गुणवन्ति, मैं मूढ़मति।
तुम चक्रवात, मैं शुष्क पात,
तुम वेद श्लोक, मैं तुच्छ बात।
तुम पूर्ण चंद्र, मैं श्याम रात,
तुम चित्त जीत, मैं पट्ट मात।
तुम शुक्ल पक्ष, मैं कृष्ण पक्ष,
तुम नभ स्वतंत्र, मैं बंद कक्ष।
तुम अनुप्रास, मैं यमक श्लेष,
तुम पुनः प्रेम, मैं सतत क्लेश।
तुम शब्द शक्ति, मैं शब्द रोग,
तुम मधुर प्रेम, मैं करुण सोग।
तुम छंद बद्ध, मैं खंड-खंड,
तुम सत्य-सत्य, मैं छल प्रपंच।
तुम शशिकला, मैं पारावार,
तुम शांत बुद्ध मैं हाहाकार।
तुम क्रुद्ध हुई मैं क्षुब्ध हुआ
जीवन कविता निःसार हुई,
हूँ क्षमाप्रार्थी प्रिय मेरे
मुझसे त्रुटियाँ सौ बार हुईं।