किंचित प्रेम हमारा Jaymin Jayprakash Joshi
किंचित प्रेम हमारा
Jaymin Jayprakash Joshiतुम गंगा की चंचल धारा
मैं काशी गली का जाम प्रिये,
तुम विश्वनाथ सी आस्था
मैं शिवलिंग का घिसता भाग प्रिये।
तुम हृदय कम्पन की कामना
मैं निश्चित अविरल स्वाँस प्रिये,
तुम रति प्रीति की वासना
मैं कामदेव सा दास प्रिये।
तुम रक़्स-रास की भावना
मैं कान्हा की मुस्कान प्रिये,
तुम प्रभु मिलन की प्रार्थना
मैं मन का तेरे विश्वास प्रिये।
तुम नभ मंडल मे चंद्रमा
मैं विचलित अंध आकाश प्रिये,
तुम वर्षों से चलती साधना
मैं क्षणिक होता आभास प्रिये।
तुम अंतरमन की इक भाषा
मैं अक्षर का विस्तार प्रिये,
तुम स्वर्ग शिखर की लालसा
मैं भूमि कंकर भार प्रिये।
तुम प्रणय मिलन की अभिलाषा
मैं स्पर्श मात्र धिक्कार प्रिये,
तुम मानुषकृत अंतिल आशा
मैं प्रथम पद विकार प्रिये।
तुम हृदय कमल की आशना
मैं अर्थहीन पहचान प्रिये,
तुम दीर्घ काव्य की रचना
मैं क्षणभंगुर विचार प्रिये।
तुम कवि हृदय की कल्पना
मैं कोरा काग़ज़ विशाल प्रिये,
तुम अंत समय की कामना
मैं छोटा सा ‘आग़ाज़’ प्रिये।
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एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को पत्र लिखता है। इस पत्र में प्रेमी स्वयं को अलग-अलग उपमाओं की मदद से अपनी प्रेमिका से छोटा तथा उसे बड़ा बताता है। इसी दृष्टांत को इस कविता के माध्यम से कवि दर्शाते हैं। अंतिम पंक्ति में कवि स्वयं का उपनाम ‘आग़ाज़’ बड़े सुन्दर तरीक़े से लिखते हैं।