सपनों का संसार ABHISHEK KUMAR GUPTA
सपनों का संसार
ABHISHEK KUMAR GUPTAकुछ ऐसा हो घर-द्वार मेरा,
सपनों से सजा संसार मेरा।
जहाँ सोया रहूँ मैं बिस्तर पर
तो वो आकर मुझे प्यार करे,
भानू की सुन्दर किरणों से
सज-धज कर वो श्रृंगार करे।
वो हो बिलकुल भारतीय नारी
जो मातृभाषा से प्रेम करे,
पर हाई-फाई सी सोसायटी में
इंग्लिश लैंग्वेज में बात करे।
हाथो में चाय की प्याली लिए
मेरे अधरों का वो पान करे,
बिस्तर पर बैठ के प्रेम से वो
कोयल सा गुंजन गान करे।
"उठिये ना सवेरा हो गया है"
कह कर मुझे वो जगाया करे,
मै अलसायी सी नज़रें लिए
उसको बाँहों में भींचा करूँ।
जब दफ्तर को मै रेडी रहूँ
तो वो मुझको गुडबाॅय करे,
घर के सब लोगों से नज़र बचा
तिरछी आँखों से वार करे।
दफ्तर मे जब मैं बैठा रहूँ
तो फोन मुझे बार-बार करे,
आई लव यू डार्लिंग कह कर
मिस यू किस यू सौ बार करे।
जब थक कर आऊँ दफ्तर से
तो घर जन्नत सा चमका करे,
और हाथो मे ठंडा पानी लिए
वो हँसते हुए मुझे दिया करे।
कपड़ा जल्दी से बदल के मैं
टेस्टी खाने को इनज्वाय करूँ,
फिर खा पीकर जल्दी से मैं
बेड पर उनका इन्तजार करूँ।
अब और क्या आगे बतलाऊँ
यार इतना तो अब समझा करो,
हम दो से तीन हो जाएँ जब
उस दिन का सब इंतजार करो।