ठिठुरन  Vinay Kumar Kushwaha

ठिठुरन

Vinay Kumar Kushwaha

पास जिनके न हो सदन,
अर्धनग्न हों जिनके बदन,
उनसे जाकर पूछो तुम,
क्या होती है ये ठिठुरन।
 

दिन कैसे भी कट जाए,
पर रातें उनको सताए,
खोजते हैं जो हर पल,
कहाँ मिले थोड़ी तपन,
उनसे जाकर पूछो तुम,
क्या होती है ये ठिठुरन।
 

मारे-मारे वे हैं फिरते,
कोई नहीं काम हैं मिलते,
जीने के लिए फिर भी,
करते हैं वे भी रोज जतन,
उनसे जाकर पूछो तुम,
क्या होती है ये ठिठुरन।
 

जो होटल में बर्तन हैं धोते,
भीतर-भीतर ही रोते हैं,
सबको जो भोजन परोसे,
उनको मिलती है जूठन,
उनसे जाकर पूछो तुम,
क्या होती है ये ठिठुरन।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
1021
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com