रीति बन रही कुरीति है Anupama Ravindra Singh Thakur
रीति बन रही कुरीति है
Anupama Ravindra Singh Thakurगणपति बप्पा,
आपके आगमन पर
सब तरफ रौनक है छाई,
बाजे-गाजे की ध्वनि से
सृष्टि में जीवंतता है आई।
मंगलमूर्ति आपकी
कहीं मूषक के साथ
तो कहीं माँ गौरी
के संग हर्षायी,
धूप, अगरबत्ती, सुमन की सौरभ
हर तरफ है छाई।
बड़े-बड़े पंडालों की शोभा निराली
हर तरफ दी दिखाई,
उसमें चांडाल-चौकड़ी गप-शप करती नज़र आई।
कहीं ताश तो
कहीं मोबाइल में मशगूल है हर कोई,
लाउड स्पीकर की कर्ण भेद ध्वनि से
वृद्ध मंडली गुस्साई,
पढ़ाकू छात्रों की चिड़चिड़ाहाट दी दिखाई।
हे गजकर्ण !
उटपटांग अश्लील गानों से वेदना, अपने नहीं पाई ?
आपके नाम पर की जा रही पैसों की बर्बादी से
मन में खिन्नता है छाई।
कुछ तो करो हे बुद्धि विधाता!
क्यों धर्म के नाम पर
हमारी युवा पीढ़ी है भरमाई?
कुछ ऐसा करो कि
धर्म की हानि रुक जाए,
ना हो कहीं जग हँसाई।