तेरी परछाई DEVENDRA PRATAP VERMA
तेरी परछाई
DEVENDRA PRATAP VERMAतुम ताकत थे मेरी
अब है बस मजबूरी।
देख न पाता कोई,
मुझमे तू है सोई।
तेरा यूँ मुस्काना,
फिर दिल में छुप जाना।
एक पल अच्छा लगता,
बेसुध हो तन हँसता।
है जो अब खामोशी,
मैं हूँ इसका दोषी।
मेरे घर जो आई
है तेरी परछाई।
कहते हैं सब भाई,
खुशियाँ फिर से आई।
लेकिन कुछ है टूटा,
कोई तो है रूठा।
तुझे मनाऊँ कैसे,
तुझे जगाऊँ कैसे।
उसकी मुस्कानों में तू,
मेरे अरमानो में तू।
क्या से क्या बना दिया,
जो तूने मुझे क्षमा किया।
तुम ही आई हो फिर से,
नव रूप सुसज्जित धर के।
स्नेह अमर, विश्वास अटल,
मुझमे है तेरा ही संबल।
अब अश्रु नहीं बहाऊँगा,
हर पल में तुझको पाऊँगा।