ज़िन्दगी  DEVENDRA PRATAP VERMA

ज़िन्दगी

DEVENDRA PRATAP VERMA

लाख आए तबाही के मंजर यहाँ,
विघ्न, व्याधि, उदासी के खंजर यहाँ।
 

टूटता ही नहीं सिलसिला ज़िन्दगी,
है बड़ा जीने का हौसला ज़िन्दगी।
 

मौत सिरहाने पे मुस्कुराती खड़ी,
हाथ में ज़िन्दगी तेरी है हथकड़ी।
 

मुश्किलों के कहर से समर ठान लूँ,
इतना आसां नहीं हार मैं मान लूँ।
 

नित्य संघर्ष ही है कहानी मेरी,
हूँ मैं इंसा यही है निशानी मेरी।
 

नई सुबह नई रोशनी आएगी,
ये विपत्ति भी एक रोज़ टल जाएगी।
 

साथ हूँ मैं तेरे हर कदम हर जनम
होगी ऐसे नहीं ये कहानी खत्म।
 

अश्रु मोती बने हैं तुम्हारे लिए,
भूल जाओ न जो हमने वादे किए।
 

तेरी गलियों में आता जाता रहूँगा,
ज़िन्दगी मैं तुझे गुनगुनाता रहूँगा।

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