इतना कैसे गिर जाते हो? Riya Gupta Prahelika
इतना कैसे गिर जाते हो?
Riya Gupta Prahelikaकन्या को देवी कहते हो
देवी को लूट क्यों लेते हो?
औरत को लक्ष्मी कहते हो
लक्ष्मी को बेच कयूँ देते हो?
मन्दिर में शीश झुकाते हो
भक्ति का स्वांग रचाते हो,
इतना कैसे गिर जाते हो?
पाँच साल के जिस्म
तुम्हारे पौरुष को उकसाते हैं?
पुष्प से कोमल बचपन तुम को
उत्तेजित कर जाते हैं?
सब तहस-नहस कर जाते हो,
चीखों को न सुन पाते हो?
इतना कैसे गिर जाते हो?
एक आँचल से अमृत पीकर
एक आँचल को निर्वस्त्र करो,
एक कोख के आभारी होकर
एक भावी कोख को ध्वस्त करो,
बल से निर्बल एक काया को,
अपना पुरूषार्थ दिखाते हो?
इतना कैसे गिर जाते हो?
आखों से धारा रिसती होगी
भय से वो काँपती होगी,
स्वयं से घृणित तन-मन की
अग्नि में वो तपती होगी,
एक सुखद सुनहरे जीवन को
जीते जी नर्क बनाते हो,
इतना कैसे गिर जाते हो?
तुम्हें धरा पर लाने वाली
माँ भी पछताती होगी,
रक्त से तुमको सींचा क्यों
वो शर्म से गढ़ जाती होगी,
कैसे तुम उस जननी की
आँखों से आँख मिलाते हो?
इतना कैसे गिर जाते हो?