मैं और तुम  Pragya Mishra

मैं और तुम

Pragya Mishra

मैं अग्नि का तेज़, बर्फ की ठंडक तुम,
मैं गंगा की चंचल धारा, बनारस का घाट तुम।
 

मैं बारिश की बूँद, मिट्टी की भीनी खुशबू तुम,
मैं समंदर की अधीर लहर, पूरा चाँद तुम।
 

मैं सुबह की पहली किरण, चाँद की चमक तुम,
मैं गर्मी की तेज़ धूप, शीत ऋतु की सर्द हवा तुम।
 

मैं चिड़ियों की चहचहाहट, रात का सन्नाटा तुम,
मैं रेगिस्तान की रेत, नखलिस्तान तुम।
 

मैं बचपन का बेबाकपन, उम्र की गहराई तुम,
मैं पतझड़ का पात, मधुमास का गुल तुम।
 

जो मिले सिर्फ क्षितिज पर वो धरा मैं और फ़लक तुम।

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