कल्कि अवतार Anupama Ravindra Singh Thakur
कल्कि अवतार
Anupama Ravindra Singh Thakurलौट आओ हे मधुसूदन
अब केवल तुम्हारी आस है,
द्वापर युग सुधार दिया था
अब कलयुग का भार है,
कलयुग के दुशासन का
बढ़ रहा अत्याचार है।
प्रतिदिन अपमानित होती
द्रोपदी का चीर तार-तार है,
फैली है वायुमंडल में सिसकियाँ
हर तरफ हाहाकार है,
उठाओ पंचजन्य,
करो शंखनाद,
करना स्त्री का उद्धार है।
जागो हे मुरलीधर
बस हुआ अब विश्राम है,
लौट आओ हे मधुसूदन
अब केवल तुम्हारी आस है।
आज भी भरी सभा में
सैरन्द्री की लुट रही आबरू है,
कलयुगी कीचक
करे अट्टहास है,
देखो अधर्मियों का
बढ़ रहा, दुस्साहस है।
उठाओ नारायणस्त्र
करना दुर्जन का सर्वनाश है,
लौट आओ हे मधुसूदन
अब केवल तुम्हारी आस है।
दुराचारी कुकर्म कर रहा है
कंस के कार्यों को भी
शर्मसार कर रहा है,
कभी निर्भया
तो कभी आसिफा
का शव जल रहा है,
छोड़ो अपना सुदर्शन
करना पापियों का विनाश है,
लौट आओ हे मधुसूदन
अब केवल तुम्हारी आस है।
राजनीति के कुरुक्षेत्र में
ईमानदारी फँसी है,
द्रोण की व्यूहरचना में
राजनीतिज्ञ
चल रहे शकुनी चाल है,
हर तरफ फैला अंधकार है।
उठाओ शारंग धनुष
अब करना दुष्टों का सर्वनाश है,
जागो हे देवकीनंदन
बस हुआ अब विश्राम है।
लेकर कल्कि अवतार,
आना धरती पर इस बार है,
लौट आओ हे मधुसूदन
अब केवल तुम्हारी आस है,
अब केवल तुम्हारी आस है।