कलम की संवेदना  Shubham Amar Pandey

कलम की संवेदना

Shubham Amar Pandey

मैंने कभी नहीं सोचा था कि
मेरी कलम करेगी रुदन,
चलते-चलते स्वत: कहेगी
अब और नहीं कुछ लिख पाऊँगी,
इन गुड़ियों के दर्द को
लिखते-लिखते शायद मैं ही
इक दिन मर जाऊँगी,
मैंने कभी नहीं सोचा था
मेरी कलम करेगी रुदन।
 

मैंने कभी नहीं सोचा था
कि मेरी कलम से अश्रु बहेंगे,
शब्द नहीं कागज़ पर अब
कतरा-कतरा आँसू होंगे।
अगर सिलसिला चीखों का
यूँ ही चलता रहा अभी भी तो,
मेरा अस्तित्व किसी कतरे संग
आँखों से यूँ ही बह जाएगा।
फिर कभी नहीं कुछ लिख पाऊँगी
मैं जीते जी मर जाऊँगी,
मैंने कभी नहीं सोचा था...

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