इंकलाब  Nishant Mishra

इंकलाब

Nishant Mishra

रहगुज़र हूँ मैं हर एक इंकलाब का,
इंतकाम हर एक दिल नशी ख्वाब का,
झुठला सके ना सच भी जिसे
मुहाना हूँ मैं उस दोआब का।
यूँ तो तूफ़ान में कश्ती भी डगमगा जाती है,
डूब कर जो नूतन लौटाए,
मसीहा हूँ मैं उस सैलाब का,
समंदर का, इंकलाब का।

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