जीत हम जाएँगे बिजेंद्र दलपति
जीत हम जाएँगे
बिजेंद्र दलपतिसंघर्ष है दुष्कर परंतु, विजय गीत हम गाएँगे,
दृढ़ विश्वास है अंतर्मन में, अवश्य जीत हम जाएँगे।
कोसों दूर है लक्ष्य मगर, पहुँच निश्चित हम जाएँगे,
दृढ़ विश्वास है अंतर्मन में, अवश्य जीत हम जाएँगे।
माना अपना स्वरूप बदलकर, विश्व में छाया काल है,
स्वभाव से आदमखोर, वीभत्स है, विकराल है।
व्यथित नज़ारे हैं चहुँओर, शवों का अंबार है,
वेग तो केवल काल का है, शिथिल हुआ संसार है।
संकीर्ण जरूर है मार्ग मगर, तय निश्चित कर जाएँगे,
दृढ़ विश्वास है अंतर्मन में, अवश्य जीत हम जाएँगे।
पराजित होगा वो, कुछ पल और, लहू के अश्रु पी लेंगे,
जीवनशैली बदल देंगे हम, काल के अनुरूप जी लेंगे।
रोक लेंगे हम स्वयं को भी, गर विश्राम ही उपचार है,
आत्मानुशासन,आत्मनियंत्रण, अचूक, अमोघ हथियार है।
नवरूप लेगी जग हमारी, और नई रीत हम लाएँगे,
दृढ़ विश्वास है अंतर्मन में, अवश्य जीत हम जाएँगे।