ख़्वाबों की दुनिया  Neeraj Kumar

ख़्वाबों की दुनिया

Neeraj Kumar

हमारी ख्वाबों की दुनिया भी कितनी बड़ी होती है,
जिसमें ढेरों ख्वाब रोज़ जन्म लेते हैं और दफन हो जाते हैं।
 

आँखों को बंद कर लें तो दफन ख्वाब भी हम जीने लगते हैं,
अगर आँखें खुल जाएँ तो अगले ही पल सारे ख्वाब हम भूलने लगते हैं।
 

ख्वाबों में हम अक्सर अपने आप को सबसे आगे देखते हैं,
लेकिन वास्तव में हमारे ख्वाब ही हमसे बहुत आगे दिखते हैं।
 

रोज़ कुछ अलग कुछ अच्छा करने का ख्वाब जेहन में आता है,
मगर पूरा करने लगे उन ख्वाबों को वो जोश कुछ पल में ठंडा पड़ जाता है।
 

हमारी इस अलग सी दुनिया को देखने के लिए कोई जरूरी रात नहीं है,
मगर दुनिया से बाहर निकलने के लिए जरूरी सुबह हो ऐसी कोई बात नहीं है।
 

देखे हुए ख्वाब को बदलते कभी वक़्त नहीं लगता, एक दम से बदल जाता है,
हकीकत करने जाओ ज़िन्दगी में तो उसके लिए हर वक़्त भी कम पड़ जाता है।
 

इसलिए,
ख्वाब को हकीकत करना हो तो हर हालात से लड़ना होगा,
ख्वाबों की दुनिया को बंद नहीं अपनी खुली आँखों में सजाना होगा।

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