सशक्त है बदलाव में Shalini Jain
सशक्त है बदलाव में
Shalini Jainसशक्त है बदलाव में
धरा का दर्द ज्ञात नहीं,
जुड़ाव संस्कृति से था जो
वो हमें अब भाता नहीं।
बदलाव सिर्फ बदलाव
अच्छे से बुरे की ओर जा रहे
और मान रहे बदलाव,
इस बदलाव ने धरा का छीन लिया मान,
दर्द सिर्फ धरा का नहीं
क्षीण हो गए सभी रिश्ते नाते हो या इंसान।
साँसों को भारी पड़ रहा बदलाव,
पेड़ों को काट कंक्रीट की बस्तियाँ बसा रहे,
अब तंग गलियारों में साँसों को ढूंढ़ते नज़र आ रहे।
बदलाव कैसा है ये बदलाव
जिस सभ्यता से थे जुड़े
उसको खोकर
आज फिर ढूँढ़ते नज़र आ रहे,
ये सभ्यता का प्रेम नहीं
प्रेम है साँसों का
जिनको हम खोते जा रहे,
धरा को कर आहत हम सब कुछ खो चुके
अंधकार को मान जीवन।