चीनी बंद  बिजेंद्र दलपति

चीनी बंद

बिजेंद्र दलपति

बहुत हुआ मिठास, थोड़ी फीकी चाय भी चख लो ना,
आत्मप्रेम तो है दिल में, थोड़ा राष्ट्र-प्रेम भी रख लो ना।
शत्रुओं से लोहा लेने को, सैनिक होना आवश्यक नहीं,
हैं तुणीर में अनेकों बाण, तुम भी एक रक्षक हो ना।
 

हमारे टुकड़ों पे पलने वाला, आज हमें आँख दिखा रहा,
संस्कृति के धरोहरों को, संस्कार का पाठ सिखा रहा।
लूट हमें धनकुबेर बना, चूस रहा हमें, कई अरसा हुआ,
कर दूध-पान हमारा वो, हम पर ही विष बरसा रहा।
 

कब तक हम चुप बैठकर, घुट-घुट कर यूं जीते रहें ?
शूरवीरों के लाशें गिनते रहें, लहू के आँसू पीते रहें।
शत्रु के हाथों क्यों सौंप दें, जानबूझ कर अपनी तक़दीर ?
क्यों अपने ही हाथों बाँध लें, अपने पैरों पे हम जंजीर ?
 

घुटनों पर ले आओ उसे, और तोड़ दो उसकी कमर,
आर्थिक-संकट बाण चला कर, छेड़ दो आज उससे समर।
भर हृदय में ज्वाला तुम, चलो उठो, मारो हुंकार,
राष्ट्र-हित के पथ पर चल, कर दो शत्रु का पूर्ण-संहार।

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