शहीद  Shubham Amar Pandey

शहीद

Shubham Amar Pandey

आज छलनी हो गई फिर एक छाती
आज फिर खामोश इक रखवाला हुआ है,
आज सीने से बहा है रक्त कितना
हिमशिखर ने रक्त का गौरव छुआ है।
 

जिसकी गोदी में बहुत बालक पले हैं
वो धरा क्यों आज पथराई हुई है,
चाँद सूरज भी जिन्हें माता पुकारे
शोकाकुल वह चुपचाप कोने में खड़ी है।
 

वक्षस्थल पर लहू का
कतरा-कतरा जब गिरा था,
धैर्य की उपमा धरा का
वक्ष फटने से रहा था।
 

वार्ता अंतिम समय में
लाल से कुछ हो ना पाई,
अनकहे कुछ शब्द अंतिम, सोचकर
कई रातें माँ सो ना पाई।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
713
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com