अमर वीर बलिदानी पण कवि आलोक पाण्डेय
अमर वीर बलिदानी पण
कवि आलोक पाण्डेयवीर चन्द्रशेखर आजाद जी को समर्पित
नौजवानों हर जुल्म के आघात को ललकारता हूँ;
हर दम्भ के पाखण्ड के सौगात को ललकारता हूँ।
कातर स्वरों से न्याय की, नहीं भीख माँग सकता कभी;
विप्र हूँ, हर संघट्टों में विलीन हो जाऊं कभी !
भाव अतिशय मातृभूमि को, लोकवन्दित है समर्पित,
शीश-भाल प्रतिपल समर्पित, प्राण है प्रतिपल समर्पित !
दुराग्रहों के सार को निश्चय धूमिल कर दूँ सदा ;
कंटकों के धार को विनष्ट कर दूँ सर्वदा।
मुखमण्डल शोभित चतुर्दिक,
विविध भाव आह्लाद हूँ मैं;
शूल-संशय-अन्तर-अव्ययों का, दम्भ नाशक आजाद हूँ मैं !
रक्त-मज्जा-हड्डियों पर हो रहे आघात को,
चीर संस्कृतियों के धवल-धार पर, प्रतिपल संघात् को !
विघटन की धारें खड़ी हो, लटकती मस्तकों पर तलवारें ;
आयुध के कंपन खड़े हों, चाहे प्रत्यक्ष कराल अंगारे।
धार को दृढ़ता प्रतिष्ठित, वीरता संसार को,
प्राण लेकर सोख लेना विप्लवी अंगार को !
विप्लवी अंगार जीवन में प्रतिपल है समाहित ;
शून्य में निर्बाध हूँ मैं, सृष्टि के नवयुग धारित !
युगों-युगों की झंझावातों में, शाश्वत शौर्य-शिल्प लाओ कभी ;
विराट सिंहगर्जना में, अनल गीत गाओ अभी !
मरना यदि हो, तड़प-तड़प, घुट कर मरना नहीं ;
सहस्रों राक्षसों को, दस्युओं को, मार कर मरना सही।
मही-व्योम सर्वत्र व्याप्त सुस्थिरता का कारक मिलें ;
हर अव्ययों में दस्युओं का संहारक, उद्धारक खिलें !
वक्ष फाड़े शत्रुओं की, विद्वद् लेखनी अंधेरी धार को ;
प्रकटित जीवंत संस्कृति सार को , वीरता संचार को !
युग-युग की स्मरणीय मेरी मौन का ,
हे भारतवर्ष चिर गाथा रहे ;
हे सौंदर्य निकेतन राष्ट्र !
स्नेहिल आंचल में माथा रहे !
सप्तार्णव से सप्तसिंधु का सुघर नर्तन संवाद हूँ मैं ;
सप्तद्वीप की सभ्यता का धवल कीर्ति आजाद हूँ मैं !