स्वसंस्कृति Kumari Deepanshi Srivastava
स्वसंस्कृति
Kumari Deepanshi Srivastavaनिजता के संदर्भ में सारे
पाप भी पुण्य समान लगें,
बात आवे जब दूजे की तो
पुण्य भी सब निष्काम लगें।
कैसे है ये परिवेश भला ?
जहाँ सत्य-असत्य में भेद नहीं,
मानव से बढ़कर लगता है,
जैसे अब कोई सर्प नहीं।
अब अहंकार के वशीभूत
मानव मानव से लड़ता है,
स्वसंस्कृति और गौरव को वह
तुच्छ समझ कर रहता है।
फिर नए चलन में ढलने को
वह नैतिकता को खोता है,
और कहता है यह है नई सदी
इसमें ऐसा ही होता है।
विज्ञान की छटा अनोखी है
पर अध्यात्म बिना यह अधूरा है,
इन दोनों का अद्भुत संगम केवल
भारतवर्ष में होना है।
समझो इस बात के गौरव को
यह देश हमारा अपना है,
इसके भूत और भविष्य का
इतिहास हमें ही रचना है।
न आगे बढ़ने से रोकूँ मैं
न नवाचार का विरोध करूँ,
बस स्वसंस्कृति के सम्मान का
आप सबसे एक अनुरोध करूँ।