गुज़रा वक्त और आज  SHIV VIBHUTI NARAYAN

गुज़रा वक्त और आज

SHIV VIBHUTI NARAYAN

गुज़रा वक्त सबको सुहावन लगे,
सुख दुख सब मनभावन लगे।
 

क्या लिखते हैं क्या कहते हैं सब
क्या दिन था क्या रात थी वो,
क्या समय था क्या मौसम था वो
क्या लम्हे थे क्या पल था वो।
 

पिता की डाँट और माँ का आँचल
डाँट में प्यार, था आँचल में संसार,
भाइयों का साथ और बहनों का प्यार
आपस में स्नेह, था ना कोई द्वेष।
 

पल में कटी तो पल में दोस्ती
आज अंतर इतना ही है कि अब
वो पुरानें हो गए और हम नए
क्यों भूल जाते हैं लोग कि
आज का दिन भी वैसा ही है,
रात भी वैसी है और मौसम भी,
समय भी उसी गति से चल रहा
मौसम भी अपनें समय पर बदल रहा।
 

आज भी दिन सूर्योदय से और
रात सूर्यास्त से ही होता है,
आज भी सूर्य पूरब से उदय
और पश्चिम में अस्त होता है।
 

रात में अंधेरा ही होता है
और होती है दिन में धूप,
रात में चाँद की चाँदनी और
सितारों की चमक आज भी वही है।
 

बस आज इतना ही फर्क है कि
अब लोग पहले जैसा नहीं रहे,
लोगों के विचार वैसा नहीं रहा
वो प्रेम ही नहीं रहा।
 

वो नजदीकियाँ नहीं रही
वह धैर्य ही नहीं रहा,
वो अपनापन नहीं रहा
वैसा स्वभाव ही नहीं रहा।
 

कल नफरत भी मजाक लगता
और आज मजाक नफरत हो गया,
कल पिता का थप्पड़ राह दिखाता
और आज डाँट थप्पड़ हो गया।
 

कल माँ का आँचल स्वर्ग था
और आज वो मलिन हो गया,
कल बड़ों का सम्मान छोटो को प्यार
और आज सब लुप्त हो गया।
 

कल सब दूर होके भी पास हुआ करते
और आज पास होके भी दूर हो रहे,
इसीलिए गुज़रा वक्त सुहावन लगे
और आज वर्तमान डरावन लगे।

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