गाँव की ज़िन्दगी अब पहले जैसी नहीं Prabhat Pandey
गाँव की ज़िन्दगी अब पहले जैसी नहीं
Prabhat Pandeyगाँव की ज़िन्दगी, अब पहले जैसी नहीं
जहाँ रिश्ते तो हैं, वह मिठास नहीं
जहाँ मिट्टी तो है, पर खुशबू नहीं
जहाँ तालाब तो है, पर पानी नहीं
जहाँ आम बौराते तो हैं, पर सुगन्ध का महकना नहीं।
गाँव की ज़िन्दगी, अब पहले जैसी नहीं
यहाँ लोग बेगाने से हो गए
लोग सुख साधन के भूखे हो गए
गाँव अब शहरों में तब्दील हो गए
गाँव अब चकाचौंध से लबरेज हो गए।
बुजर्गों के आशिर्वाद में
जो स्नेह कीर्ति का भाव था,
पाश्चात्य संस्कृति में, कहीं विलुप्त हो गया,
मिल जुल कर पर्व मनाने की भावना
अलगाव समय रूपी भट्ठी में जल गई।
गाँव की ज़िन्दगी, अब पहले जैसी नहीं
आदमी को आदमी से मिलने की फुर्सत कहाँ,
इन्सानियत और भाईचारा शहरीकरण में खो गया,
आधुनिकता का नशा हर व्यक्ति पर छा गया,
जो छलकता था प्यार, वो दिखावा बनकर रह गया।
पैसों के लिए हर शख्श पलायन कर गया
विश्वास का घर अब खण्डहर बन गया
गाँव की ज़िन्दगी, अब पहले जैसी नहीं...