भूल गये वो अब हमें! Satish sanwle
भूल गये वो अब हमें!
Satish sanwleउन दिनों हम ज़रूरत
से ज़्यादा काम करते थे,
घर में कम और उनके
दिल में ज्यादा आराम करते थे।
भूल गए वो अब हमें जिनकी
गली के चक्कर हम हज़ार करते थे।
वो खिड़की जिसका हम
दीदार सुबह शाम करते थे,
थे वो भी बड़े मस्त
जो आँखों से हम पे प्रहार करते थे।
भूल गए वो अब हमे जिनकी
गली के चक्कर हम हज़ार करते थे।
हम से वो मुलाकात
दिन में कई बार करते थे,
मुह से तो वो बहुत ही कम
आँखों से ही बातें हज़ार करते थे।
भूल गए वो अब हमे जिनकी
गली के चक्कर हम हज़ार करते थे।
हमारे लिए झगड़ा वो
दुनिया वालों से कई बार करते थे,
जाने कब मिलेंगे वो
जिनसे हम प्यार बेशुमार करते थे।
भूल गए वो अब हमे जिनकी
गली के चक्कर हम हज़ार करते थे।