चाहत Tanushri Das
चाहत
Tanushri Dasचाहत थी तब भी
शायद थोड़ी बाकी है अब भी...
बातें तो होती थी तब,
इंतज़ार करते हैं अब,
कि होंगी बातें कब?
सजा कर दिया था दिल,
पूछा था क्या मैं हूँ तुम्हारे काबिल?
हम थे मासूम,
क्या था हमको मालूम,
कि चाहत थी तब भी
शायद थोड़ी बाकी है अब भी...
दोस्ती में यादें तो बन जाती ही हैं,
टूट जाए तो जंजीर सी बँध जाती हैं...
अपनी यारी सबसे निराली,
कभी ना टूटे इतनी प्यारी...
अगली सीढ़ी चढ़ ना सकी ,
पर बिना हिले वहीं रुकी...
एहसास ना हुआ कि
चाहत थी तब भी शायद
थोड़ी बाकी है अब भी...
चार कदम थे रुके वहाँ,
चल पड़े दो कदम कहाँ?
फिर रुके जाके बहुत दूर,
जहाँ मिला उसे उसका महबूब...
मुड़ के बोला जीवन इसके बिना,
मैं नहीं कर सकता कल्पना...
अब हुआ महसूस कि,
चाहत थी तब भी शायद
थोड़ी बाकी है अब भी...
दो कदम जो रुके थे वहीं,
वो भी चलना चाहते हैं कहीं...
पिछला सब याद आया,
पलट गई दिल की काया...
भागना चाहते हैं दूर उन यादों से,
कि मिले कोई हमसफर इन राहों में,
था तो कुछ भी नहीं,
पर कुछ तो था सही...
क्योंकि चाहत थी तब भी
और शायद थोड़ी सी बाकी है अब भी......