सहानुभूति  Mohanjeet Kukreja

सहानुभूति

Mohanjeet Kukreja

आज चलते-चलते
एक दृश्य देखा -
कुछ साधारण सा
कुछ असाधारण सा...
 

देखा... एक बालक
अंधाधुंध दौड़ता हुआ
ठोकर खा कर गिर पड़ा,
और नज़रें घुमा कर
देखने लगा चारों तरफ़
इस उम्मीद में शायद -
कि कोई आएगा
और सहारा दे कर
उसे उठाएगा !
 

और मैं...
अपनी धुन में
गुमसुम सा चलता रहा
यह सोचते हुए कि
कितना पागल है यह -
बिल्कुल मेरी ही तरह......!!

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