देह्प्रेम  ARUN KUMAR SHASTRI

देह्प्रेम

ARUN KUMAR SHASTRI

हो सकता है तुम सो गए हो,
ये भी हो सकता है
तुम सो न पाए हो,
मैं जानता हूँ जो दर्द
तुमने मुझे दिया है
वो तुमको भी तो
तड़पा रहा होगा,
कुछ-कुछ टीस जैसे ?
जेहन में तुम्हारे,
यकीन मानो मैंने
तुमको माफ़ कर दिया।
 

देखो छू कर देखो मुझे
मेरा शरीर एक दम ठंडा है,
स्पंदन रहित,
ये तो उसी समय
शिथिल हो गया था
जब तुमने मुझसे
विदा ली थी
ये कह कर
कि अब तुमको
किसी और से प्यार हो गया है,
यकीन मानो मैंने भी
उसी पल ये दुनिया
छोड़ दी थी,
जैसे तुमने मुझको त्यागा
मैंने
अपने जिस्म को त्याग दिया,
जाओ, जाओ ना, अब जाओ भी
तुम्हारा प्यार राह देखता होगा
अपनी नव प्रिया की,
नहीं देखो तुम नहीं जाओगे तो
मेरी रूह इस पृथ्वी के
वायुमंडल में ही भटकती रहेगी,
जाओ भी अब
और
मुझे भी अपनी राह लेने दो।
 

बहुत दिनों के बाद नींद आ रही है
अलविदा ! अलविदा ! अलविदा !
एय सखी अलविदा ........!

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