सब कुछ सामान्य है Anupama Ravindra Singh Thakur
सब कुछ सामान्य है
Anupama Ravindra Singh Thakurसब कुछ तो हिला है
मगर कहाँ, कुछ रुका है?
महामारी का डर अब भी
मन में पला है
पर ऊपरवाले पर विश्वास
और अधिक बढ़ा है।
संकट में हर घर में
दिया जला है
दुआओं में दूसरों की,
हाथ भी तो फैला है
अलग-अलग रूपों में
दीन को दीनानाथ मिला है,
कभी अन्नदाता बन कर
निकला है
तो कभी सफेदकोट पहनकर
मिला है
तो कभी खाकी वर्दी पहन
सबको बचाने चला है।
सब कुछ तो हिला है
मगर कहाँ, क्या रुका है ?
कई महीनों तक
बिना काम धाम के ही चला है
फिर भी करोड़ों का पेट पला है
जाने कैसे वह समय भी टला है
महामारी से,
बड़े से बड़ा राष्ट्र दहला है
पर हिंदुस्तान अब भी
डिगा है न हिला है
वह तो चट्टान बनकर
दुनिया से मिला है।
सब कुछ तो हिला है
पर कहाँ, क्या रुका है ?
करोना से अधिक घाव
तो पड़ोसियों से मिला है
उनको शिकस्त देने
हमारा जवान हँसते-हँसते
कुर्बान हो चला है।
अब भी यही विश्वास पला है
चुनौतियों से जीवन खिला है
अभी भी आसमान नीला है
रात में अंधकार
और दिन में उजाला है
आज भी प्रकृति
रंग बिरंगी ओढे दुशाला है।
सब कुछ तो
सामान्य हो चला है,
कहाँ कुछ बदला है
अब भी तो वही बचाने वाला है
फिर क्यों न सोचे
सबकुछ तो हिला है
पर कहाँ, कुछ रूका है?