हिंदी  बिजेंद्र दलपति

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बिजेंद्र दलपति

सुमधुर बोली, जैसे हो पियूष की धारा,
आकर्षक वर्णमाला, हरे लोचन-तारा।
अनुपम, अलौकिक, परम मनोहर,
संस्कृत की बेटी, संस्कृति की धरोहर।
अति सरला एवं अति उपयोगिनी,
अत्यंत परिक्षमि, है वो मंदाकिनी।
 

सुशोभित, माँ भारती के माथे की बिंदी,
समग्र विश्व में अतुल्य, है मेरी हिंदी।
 

सूर की भक्ति और मीरा के प्रेममय गीत,
तुलसी के दोहावली, मानस-रामचरित। 
दिनकर, निराला, जयशंकर, मैथलीशरण,
सुभद्रकुमारी, महादेवी, सुमित्रानंदन।
दिव्य-खनि, अमूल्य मणियों भरी,
सकल भाषाओं की, है वो सिर-धारी।
 

सुशोभित, माँ भारती के माथे की बिंदी,
समग्र विश्व में अतुल्य, है मेरी हिंदी।

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