मैं हिंदी हूँ SANTOSH GUPTA
मैं हिंदी हूँ
SANTOSH GUPTAमैं सुंदर हूँ, मैं शोभा हूँ
मैं भाषा की आभा हूँ,
मैं विचारों के संगम की
अद्भुत परिभाषा हूँ।
मैं राष्ट्रीयता के सेतु का
मजबूत स्तम्भ हूँ,
मैं रसिका पर शब्दों के
स्वाद का आरम्भ हूँ।
मैं तत्सम हूँ, मैं तद्भव हूँ,
मैं सहज हूँ, मैं सम्भव हूँ,
संस्कृत से संस्कृति तक
जन मानस की प्रकृति में हूँ।
शिष्टता की प्रवृत्ति में हूँ
नैतिकता की सुनीति में हूँ,
चरित्र का निर्माण मैं हूँ
समाज का कल्याण मैं हूँ।
सभ्यता का कवच बनकर
राष्ट्र का उत्थान मैं हूँ,
मैं आदर हूँ, सम्मान हूँ
मैं मर्यादा, मैं ध्यान हूँ।
मैं प्रेम हूँ, मैं चाव हूँ,
मैं प्रकट होता भाव हूँ,
अखण्डता की, एकता की
मैं अटूट सन्धि हूँ,
माँ भारती के माथे की
मैं प्रज्ज्वलित बिंदी हूँ।
मैं हिंदी हूँ। मै हिंदी हूँ।
जय हिंद
जय हिंदी
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हम एक ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जब हिंदी के उत्थान के लिए विशेष प्रयासों की अति आवश्यकता है। किसी भी राष्ट्र के उन्नति के लिए उसकी मातृभाषा की एक अहम भूमिका होती है। हिंदी हमारी सभ्यता और संस्कृति का आधार है। हिंदी की महानता इसकी मौलिकता, वैज्ञानिकता और सरलता में है। नई पीढ़ी इस बात के बोध से विचलित हो रही है, ऐसे में हम युवा कवियों का उत्तरदायित्व बन जाता है कि हिंदी भाषा के महत्व को समझें और समझाएँ तथा सभ्यता संंक्षरण के साथ राष्ट्र के विकास में सक्रिय भूमिका निभाएँ।