बँट ना जाए आज़ादी SANTOSH GUPTA
बँट ना जाए आज़ादी
SANTOSH GUPTAबाँटा हमने अहल ए वतन को
वीरो को भी बाँट दिया,
बाँटी हमने कामयाबी
जंजीरों को भी बाँट दिया।
वतन परस्तों के बहने वाले
खून पसीनो को भी बाँट दिया,
खाई गोली जंग ए आज़ादी में
उन सीनो को भी बाँट दिया।
पाकर आज़ादी फिर हमने
सर ज़मीनों को भी बाँट दिया,
कह कर तेरा-मेरा हमने
सब रंगों को बाँट दिया।
हिंदुस्तानी जज्बे और
उमंगों को भी बाँट दिया,
बँट न जाए जज्बात
सब बातों को तो बाँट दिया,
बँट न जाए आज़ादी
आज़ादों को तो बाँट दिया।
जय हिंद।
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सन 1947 में हमें आज़ादी तो मिल गई और अंग्रेज़ों ने हमारे देश को भारतीय नेतृत्व के हाथों सौंप दिया। लेकिन हमारे देश की राजनीति ने देश के विकास और समृद्धि के नाम पर सत्ता और कुर्सी के लालच में हर वर्ग को राजनीतिकरण के औजार से कई हिस्सों में बाँट दिया, यहाँ तक कि हमारे इतिहास, स्वतंत्रता सेनानियों, जाति, समुदाय, धर्म इत्यादि का वर्गीकरण करके वोट बैकिंग की राजनीति करते हुए शासन किया। मेरी यह रचना ऐसी ही विचारों से प्रभावित एक व्यंग है जो देश के अधिनायकों पर कटाक्ष करती है।