उड़ान Anupama Ravindra Singh Thakur
उड़ान
Anupama Ravindra Singh Thakurकितना उड़ेगा तू
औरों के कंधे पर बैठ कर,
बहुत विशाल है यह संसार
क्या कर पाएगा पार भवसागर
अनैतिकता के बल पर?
अगर नहीं है
जान खुद के पंखों में,
नहीं है कुछ प्रतिभाएँ तुझ में
केवल इर्ष्या के हो वश में,
बस शामिल होना
चाहता है दौड़ में?
फिर गिरेगा
तू कुछ ही क्षण में,
संभल जा
ना दूसरों को गिरा ,
जी हुजूरी के बल पर
ना अपना ओहदा बढ़ा।
ना खुद को
ईश्वर की नज़रों में गिरा,
ना दिखावा कर।
जो जितना है
उससे अधिक बता कर
ना झूठा श्रेय लिए जा।
ऐसी तरक्की पाकर
कैसे जिएगा
खुद का चैन गंवाकर?
अपनों के ही पीठ में
घोंपकर खंजर
कब तक खुश होगा
ऐसे कर्म कर?
थोड़ा सा धैर्य धर,
मिलेगा तुझको भी
तेरी काबीलियत से बढ़कर,
कितना उड़ेगा तू
दूसरों के कंधे पर बैठ कर?