मंज़िल की ओर  APOORVA SINGH

मंज़िल की ओर

APOORVA SINGH

तू चल रहा है ना
तू चलता चल,
जो फेंक रहे पत्थर तुझपे
फेंक लेने दे,
तू तो बढ़ रहा है ना?
तो बस बढ़ता चल।
 

तेरी तकलीफ से वाकिफ हूँ रे,
पर इस दर्द को
चेहरे पर उभरने ना दे,
शश श श श .........
तेरा मज़ाक उड़ाएँगे लोग
छुपा कर रख दिल में,
किसी को पता चलने ना दे।
 

तू मत खोना हौसला अपना,
समय ही तो है
ये भी गुज़र जाएगा,
जो रोक दिए चलते कदम तूने
मंज़िल छूते-छूते रह जाएगा।
 

गर टपक पड़े आँसू कभी
बह लेने देना इन्हें जी भर,
जो लिया थाम इन्हे आँखों में ही
दिल संभाले ना संभल पाएगा।
 

ये वक़्त कठिन है ज़रूर
पर ये भी रुक कहाँ पाएगा,
यही तो नियम हैं ईश्वर के
आज जो है वो कल पलट जाएगा।
 

इस यात्रा में तुझे
है परखना हर शख्स को,
कोई बन के चले साया तेरा
तो कोई थाली में छेद कर निकल जाएगा।
 

ये संघर्ष, ये बुरा वक़्त,
एक गुरु के समान समझ,
जो बन के निकलेगा तू इस दौर से
खुद को पहचान भी ना पाएगा।
 

जवाब ना देना
उन चुभती बातों का,
ये बातें ये ताने ही तो
तुझमें जुनून भरेंगी,
और फिर जब बात होगी
कभी कहीं कामियाबी की,
अनजाने ही सही
तेरा ज़िक्र निकल आएगा।
 

और तब,
तब तू अकेला ना होगा,
सारे रिश्ते, वे नाते,
सब लौट आएँगे,
जो फेर लेते थे नज़रें तक
देख कर तुझे,
तुझे मिलने को तरस जाएँगे।

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