छोड़ आऐ हैं जिन्हें कहीं पीछे हम Surya Pratap Singh
छोड़ आऐ हैं जिन्हें कहीं पीछे हम
Surya Pratap Singhछोड़ आए हैं जिन्हें कहीं पीछे हम
कुछ हसीन ख्वाबों की तलाश में,
पथराई आँखों में आज भी जुस्तुजु है उनकी
वक्त-बेवक्त पर किसी दिन हमारे लौट आने की।
हासिल कर सके हैं कुछ तो मगर
खो भी दिए बहुत कुछ ख्वाबों की आरज़ू में,
इक आरज़ू की तलाश में निकले जो इक बार
मुकम्मल कभी वापस घर जा न सके।
कोई झोंका हवा का जब घर से आता है
हूक सी उठती है दिल में और झकझोर जाता है,
भूली-बिसरी यादें सब-कुछ साथ लाता है
आ भी जाओ अब वापस कहकर हमें बुलाता है।
काश ज़माने की ये मजबूरी
और ये दूरी नहीं होती,
मुकम्मल होती खुशियॉं सारी
और ये ज़िन्दगी अधूरी न होती।