ज़िंदगी की दौड़ Aman Kumar Singh
ज़िंदगी की दौड़
Aman Kumar Singhज़िन्दगी की दौड़ में,
दौड़ता हर कोई यहाँ।
कोई दौड़े बिन भी जीत गया,
कोई लड़ते-लड़ते हार गया।
पर सच्चाई इस जीवन की
जो हार गया सो हारा है,
पर जीतने वाला भी यहाँ हार गया।
ये दौड़ एक ऐसी दौड़ है
जिसकी न कोई ठौर है,
कोई पूरा जीवन दौड़ रहा
कोई आधे में ही दम तोड़ रहा।
जो पूरा जीवन दौड़ गया
उसके भी हाथ निराशा है,
जीवनभर जिसने लोगों को हँसाया,
वो भी यहाँ रूआँसा है,
जीवनभर जिसने प्यार दिया,
वो अपनों के प्यार का प्यासा है।
जीवन एक ऐसा दरिया है
जिसका न कोई किनारा है,
जो जीवनभर सबका सहारा था
उसका न कोई सहारा है।