सपना  Peeyushi Jha

सपना

Peeyushi Jha

ये जहाँ वो जहाँ, सब अपना जहाँ बनाना है,
बन के पंछी चुलबुली सी, अंबर में खो जाना है।
 

फैला के अपने पंख विशाल, अनंत सागर को निहारना है,
उड़ते-उड़ते जब थक जाऊँ पकड़ सूरज की लालिमा को,
उसके गोद मे समाना है।
 

सोचती हूँ कभी-कभी, क्या होता अगर होती तितली,
फूलों के संग चुप-चुप, कानों मे फुसफुस करना है।
 

अगर होती मैं वृक्ष विशाल, खुशियों की छाया बनाना है,
पेंगुइन बन के बरफों पे, थिरक-थिरक ताल बजाना है।
 

एक समय था बचपन का, सपनों से था भरा-भरा,
उन सपनों को ज़िंदा कर, ज़िन्दगी वहीं बिताना है।

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