तुम जो रूठे DEVENDRA PRATAP VERMA
तुम जो रूठे
DEVENDRA PRATAP VERMAतुम जो रूठे राम हैं रूठे
जीवन के सब कम हैं रूठे,
धरती रूठी, अंबर रूठा,
रूठे चाँद सितारे,
सपनों के दीपक रूठे सब
रूठे अश्रु के धारे।
तुम जो रूठे राम हैं रूठे
जीवन के आराम हैं रूठे,
खुद में तुझको देखूँ प्रतिपल
फिर भी नैन दरस को तरसें,
अन्तर्मन के सुमन सूखते
स्नेह मेघ को कह दो बरसें।
मधुर मिलन सुखधाम हैं रूठे
जीवन के सब काम हैं रूठे,
तुम जो रूठे राम हैं रूठे।