आओ विकास Abhishek Pandey
आओ विकास
Abhishek Pandeyपक्की नहरें, पक्की नदियाँ,
पक्की सड़कें, पक्की गलियाँ,
पूरा पोषण, उन्नत शिक्षा,
कब आएगी मेरे "बलियाँ"?
नंगे बदन, उघारे हैं,
झुग्गी में डेरा डारे हैं,
दशकों से अपलक नयनों से
दिल्ली की ओर निहारे हैं।
अब वही आस मिटने वाली
मन उनका है खाली-खाली,
अब बस उनका एक सहारा,
रूखी रोटी, फूटी थाली।
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आज देश की राजनीति बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय से हटकर स्वान्तः सुखाय और स्वान्तः हिताय में केंद्रित हो गयी है। हर बार विकास की चर्चा होती है, विकास कुछ हद तक शहरों में पहुँचा भी है पर गाँव अभी भी विकास से कोसों दूर हैं। उन ग्रामीणों की आशा अब धूमिल हो चुकी है और वे दरिद्रता के भँवर में जीवन जीने के लिए विवश हैं।