जागो भारत Abhishek Pandey
जागो भारत
Abhishek Pandeyभारत माँ के बेटे देखो
पड़े हुए हैं पश्चिम के श्रीचरणों में,
त्याग, शील का मार्ग छोड़,
वो चले गए हैं भोगवाद की शरणों में।
जर्जर कुटिया को उजाड़
वे ऊँचे भवन बनाते हैं,
पूँजीपतियों के प्रांगण में
नित अपना शीश झुकाते हैं।
स्वजनों के खूनों की होली
खेल गर्वित हो इठलाते हैं,
माँ भारती की मार्मिक आहों पर
वे हर्षित हो इतराते हैं।
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भारतवर्ष सदैव से ज्ञान की भूमि रही है। सत्तशक्ति और धन का वैभव सदैव ज्ञान के आगे नतमस्तक रहा है। परन्तु आज हम भारतीय पश्चिमी प्रभाव में इतने उतावले होकर बह रहे हैं कि हमारा ज्ञान, ध्यान सब किनारे लग गया है। आज सारा ज्ञान सत्ता और धन के चरणों पर पड़ा है। पश्चिम के अंधाधुंध अनुकरण से उत्पन्न इन्हीं विसंगतियों के सन्दर्भ में मेरी यह कविता है।