महाराणा को श्रृद्धांजलि  Abhishek Pandey

महाराणा को श्रृद्धांजलि

Abhishek Pandey

भारत माँ के आँचल में
जो बड़े-बड़े रजवाड़े थे,
उन्होंने भी निज इतिहास भुला
मुगलों के चरण पखारे थे।
 

जाने कितने राजाओं ने
अपना साम्राज्य बचाने को,
अपनी ही लाज बेच खाई
दिल्ली को तनिक रिझाने को।
 

जब मुगलों के आतंकों से
पूरा भारत आतंकित था,
तब भी अकबर था डरा हुआ
उस एक वीर से शंकित था।
 

भले भरे हों कायर युग में
पर इतिहास नहीं रच पाते हैं,
धरती से उड़ती धूल सदृश
वो सूर्य नहीं ढक पाते हैं।
 

राणा कुम्भा का वंशज था
निज गौरव का अभिमानी था,
युद्ध कला के जौहर में
उसका न कोई भी सानी था।
 

गैरों सदृश समझ करके
अकबर ने भेजे शांतिदूत,
पर मस्तक उसका झुका नहीं
था भारत की माटी का सपूत।
 

जब बहु बार वार्ता विफल रही
दिल्ली ने रण की राह गही।
 

एक लाख की सेना लेकर
मानसिंह आगरा से था निकल पड़ा,
राणा की कर रहा प्रतीक्षा
हल्दीघाटी में आ हुआ खड़ा।
 

अरिदल की ललकारों से
राणा का रक्त उबाल उठा,
राजपूती गरिमा बोल उठी
तलवार उठा, तलवार उठा।
 

चढ़ चेतक पर तलवार उठा
अरिदल का रक्त बहाने को,
मेवाड़ी योद्धा संग लिए वह
सज्ज हुआ अब हल्दीघाटी जाने को।
 

आ पहुँची हल्दीघाटी थी
वो पीत वर्ण की माटी थी,
वह भविष्य देख मुस्काती थी
राणा का गौरव गाती थी।
 

रण हुआ शुरू
राणा ने भीषण हुंकार भरी,
खड्ग उठाकर बढ़ा वीर
मानो काली जीभ पसार बढ़ी।
 

हल्दीघाटी की माटी में
राणा ही राणा दिखता था,
थे वीर अनेकों वैरी दल में
पर आज कोई न टिकता था।
 

वह आज जिधर फिर जाता था
भीषण विध्वंस मचाता था,
नरमुंडों को वह काट काटकर
और भड़कता जाता था।
 

ऐसा लगता रण प्रांगण में
मानो उतरा हो काल स्वयं,
महाकाल ने रूद्र रूप में
हल्दीघाटी में लिया जन्म।
 

राणा का साहस देख देखकर
भारत माँ मुस्काती थी,
निज गुदड़ी में ऐसा वीर देख
वो गर्वित हो इतराती थी।

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