उत्साह Abhishek Pandey
उत्साह
Abhishek Pandeyअश्रु बहुत तू पी चुका
अंगार बनाकर अब उगल,
नींद भर तू सो चुका
हे वीरवर ! अब जाग, चल।
शस्त्र भू पर क्यों पड़े
तू शस्त्र धर, संग्राम कर,
मातृभूमि माँगती है
रक्त का निज दान कर।
कर सृजन खुद का प्रकाश
चंद्र बनकर क्या करेगा,
बन सके तो सूर्य बनकर तू दिखा।
यूँ तो चढ़े हैं शीश कितने
माँ भारती की गोद में,
अब देर न कर काटकर
एक शीश अपना भी चढ़ा।