हे मेरे जीवन के प्रसून  Abhishek Pandey

हे मेरे जीवन के प्रसून

Abhishek Pandey

क्षोभों की लम्बी रजनी बीती
विपदा के बादल बरस चुके,
झंझावातों के झोंके भी
अब शिथिल पड़े और थमे रुके।
 

दिनकर को देखो गगन चढ़ा
लतिकाओं में नवल पराग भरा,
अब खिल जाओ जीवन के प्रसून।
 

परितः सुगंध बिखेरो तो,
मन मंदिर को किंचित टेरो तो,
प्राणों को आलोकित कर दो
भ्रमरों का दुःख भी मोचित कर दो।
 

छक भर मधुपान कराओ तो
प्रकृति की गोद सजाओ तो,
हे मेरे जीवन के प्रसून!
तुम एक बार खिल जाओ तो।

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